सूर्य चालीसा हिंदी में

सूर्य चालीसा हिंदी में

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By Pooja Sharma

इस लेख में आपको सूर्य चालीसा हिंदी में (Surya Chalisa) अर्थ सहित मिल जाएगी। हर रविवार को सूर्य चालीसा का पाठ करने से शारीरिक तथा मानसिक विकारो से राहत मिलती है। हिन्दू धर्म में कहा गया है कि सूर्य को जल चड़ा कर उनकी पूजा पाठ करने से सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

सूर्य चालीसा हिंदी में (surya chalisa hindi)


कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग,
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥

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भगवान सूर्य का पूरा शरीर स्वर्ण रंग का है तथा इनके कानो में जो कुंडल है वो मकर के है तथा इनके गले में मोतियों की माला है, पद्मासन में चक्र तठे शंख के साथ सूर्य देवता का ध्यान करें।

जय सविता जय जयति दिवाकर। सहस्त्रांशु सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु, पतंग, मरीची, भास्कर। सविता, हंस, सुनूर, विभाकर॥
विवस्वान, आदित्य, विकर्तन। मार्तण्ड, हरिरूप, विरोचन॥
अम्बरमणि, खग, रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्त्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥

आपकी बारम्बार जय हो सूर्य देव, दिवाकर की जय हो, आप के अनेक नाम है तिमिरहर, भानु, , मरीची, भास्कर, सविता हंस, विभाकर, विवस्वान, आदित्य, , मार्तण्ड, विष्णु रुप विरोचन, अंबर मणि कहलाने वाले सूर्य देवता आपको ही वेदों में हिरण्यगर्भ कहा गया है। सहस्त्रांशु प्रद्योतन कहते हुए मुनि गण खुशी से झूम रहे हैं।

रुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै। दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥

भगवान सूर्य देव जिनके सारथी अरुण हैं, यह सारथि सात घोड़ों को हांकते हैं। आपके इस मंडल की महिमा बहुत ही अलग है। हे भगवान सूर्य आपके इस तेजस्वी रुप तथा प्रकाश पर हम पूर्णरूप से न्यौछावर हैं। आपके रथ में उच्चै:श्रवा जुटे हुए है जो सफेद रंग के है यह घोड़े की प्रजाति पहले इंद्र के पास थी। मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता, सूर्य, अर्क, खग, कलिकर पौष माह में रवि एवं आदित्य नाम लेकर और हिरण्यगर्भाय नम: कहकर बारह मासों में आपके इन नामों का बड़े प्रेम से हम गुणगान करके 12 बार नमन करने से पदार्थ अर्थ, बल, काम और मोक्ष की प्राप्ति जो होती है व दुख, दरिद्रता और पाप को खत्म कर देती है।

नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन। रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है। प्रबल मोह को फंद कटतु है॥

भगवान सूर्य की कृपा पाने का सबसे आसान तरीका है सूर्य नमस्कार। जो सूर्य ब्भ्ग्वन की सेवा करता है उसे आठों सिद्धियां व नौ निधियां प्राप्त हो जाती है। तथा सूर्य भगवान के 12 नामो का जाप आपको हजारो जन्म के पापो से मुक्त कर देता है। जो भी सूर्य की महिमा का गुणगान कर ने समय बिताते है उनके शत्रुओ को नाश हो जाता है। सूर्य भगवान की महिमा गाने से धन सम्पत्ति तथा सुख समृद्धि प्रापर्ट होती है।

अर्क शीश को रक्षा करते। रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत। कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित। भास्कर करत सदा मुखको हित॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे। रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा। तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर। त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन। भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर। कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा। गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥
विवस्वान पद की रखवारी। बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्त्रांशु सर्वांग सम्हारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे॥

अर्क के रूप में शीश की सुरक्षा करने वाले सूर्य देव है जो यह शीश पर नित्य निहार करते हैं। सूर्य के रुप आख्नो में है , दिनकर के समान कानो में निवास करते हैं, भानु के रूप इ यह नाक पर यानिकी नासिका पर बसते है, यही सूर्य अपने तीखे रूप में होठो पर निवास करते हैं, और कंठ पर उस रेट की तरह निवास करते है जो सुवर्ण रेत कहलाती है यही सूर्य कंधो पर उस तेज धार दर हथियार के समान निवास करते है जो तिग्म तेजस: रुप में है, युगल के समान हाथो पर भानुमान के रूप में हृदय पर, आदित्य के रूप में नाभि पर, मन मुदभर के रूप में कमर पर, गोपति सविता के रूप में जांघों पर, निवास करते हैं आप ही इस संसार को सम्भालते हैं और आपका रक्षा कवच बड़ा विचित्र है।

अस जोजन अपने मन माहीं। भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै। जोजन याको मन मंह जापै॥
अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके। धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा। किया करत सुरमुनि नर सेवा॥

उसे किसी बात का भी नही होता है जो सूर्य भगवान को स्मरण करता है, जो सूर्य भगवान का जाप करता है उसे कभी चरम रोग नही होता है। यह देव अंधकार को मिटाते है और प्रकाश को बढ़ाते हैं। में उस देव को प्रणाम करता हु। सूर्य के प्रताप से दुसरे ग्रहों के दोष भी खत्म हो जाते हैं, इस सूर्य की सेवा में तो देवता, ऋषि-मुनि, सब लगे हुए हैं।

भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों। दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी। हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन। मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥
भानु उदय बैसाख गिनावै। ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता। कातिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं। पुरुष नाम रविहैं मलमासहिं॥

प्रतिदिन भगवान सूर्य की पूजा करने से भ्रम भी दूर हो जाते है और मोक्ष प्राप्त हो जाता है। धनी है वो जो सूर्य की ब्भ्क्ति करते है। आपकी भक्ति करने वाले के जीवन से अंधकार रुपी समस्या खत्म हो जाती है और प्रकाश रूपी खुशिया आ जाती है। आप माघ माह में अरुण , फाल्गुन में सूर्य, बसंत ऋतु में वेदांग तो उद्यकाल में रवि , भादों माह में यम , आश्विन में हिमरेता हैं, कार्तिक माह में दिवाकर कहलाते हैं मल मास में आपको रवि कहते हैं।

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य,
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥

जो सूर्य चालीसा का जाप करता है उसे सुक समृद्धि प्राप्त होती है तथा उसके जीवन में खुशहाली रहती है।

FAQs

सूर्य को जल कितने बजे तक देना चाहिए?

सूर्य उदय होने के एक घंटे के अंदर अर्घ्य देना चाहिए, पर सुविधा अनुसार आप सुबह तक सूर्य को जल चढ़ा सकते हैं।

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