सुदर्शन चक्र का घमंड किसने तोड़ा था?

सुदर्शन चक्र का घमंड किसने तोड़ा था?

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By Shubham Jadhav

एक समय की बात है सुदर्शन चक्र को अपनी शक्तिओं का अहंकार हो गया था पर यह अहंकार ज्यादा समय तक नही टिक पाया। क्या आप जानते हैं कि सुदर्शन चक्र का घमंड किसने तोड़ा था अगर नही तो इस लेख में आप उस कथा का वर्णन मिल जाएगा जिसमे सुदर्शन चक्र के अहंकार के अंत की बात कही गयी हैं।

सुदर्शन चक्र का घमंड किसने तोड़ा था?

इस घटना के पीछे एक छोटी सी कथा है तो आइये जानते हैं क्या है वह कथा –

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पंडित विकास शास्त्री के अनुसार एक बार द्वारका में जब भगवान कृष्ण की रानी सत्यभामा, गरुड़ तथा सुदर्शन चक्र एक ही महल में उपस्थित थे, तभी सत्यभामा में कृष्ण से कहा कि स्वामी जब आपने राम के रूप में जन्म लिया था तब आपका विवाह सीता से हुआ था, क्या वह मुझसे भी ज्यादा सुंदर थी? यह सुन कर कृष्ण समझ गये कि रानी को सुन्दरता का अहंकार हो गया है। इसके बाद गरुण ने कहा कि स्वामी मुझसे तेज कोई उड़ सकता है क्या? इन प्रश्नों के बीच सुदर्शन चक्र ने भी प्रश्न किया कि क्या मुझसे से ज्यादा कोई शक्तिशाली भी है? मेने कितने सारे युद्धों में आपको विजय दिलाई है। इन सब प्रश्नों को सुन कर कृष्ण ने निश्चित किया कि इन तीनो के अहंकार को तोड़ना होगा।

तब उन्होंने गरुड़ से कहा कि गरुड़ जाओ और हनुमान जी को बुला कर लाओ और उन्हें कहना कि द्वारका में राम और सीता उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। फिर उन्होंने सुदर्शन चक्र से कहा कि “तुम द्वार पर जाओ और किसी को महल के अंदर प्रवेश मत करने देना”। इसके बाद उन्होंने सत्यभामा से कहा हम दोनों राम तथा सीता का रूप धारण कर लेते हैं फिर उन्होंने रूप धारण किया और वह सिंहासन पर पुनः आ कर बैठ गये।

गरुण हनुमान जी के पास पहुचे और गरुड़ ने हनुमान जी से कहा कि “द्वारका में भगवान राम और माता सीता आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं, आइये चलिए मेरी पीठ पर बैठ कर द्वारका चलते हैं कम समय में पहुँच जाएँगे क्योकि में काफी तेजी से उड़ सकता हूँ।” पर हनुमान ने कहा कि “आप चलो में आता हु”। जैसे कि गरुण द्वारका पहुचे तो उन्होंने देखा कि हनुमान जी पहले से ही द्वारका में उपस्थित है और वह सुदर्शन चक्र को मुह में रख कर महल के अंदर प्रवेश कर रहे हैं।

जब हनुमान भगवान कृष्ण के समीप पहुचे और मुख से सुदर्शन को निकल कर कहा कि “प्रभु माफ़ करना मेने आपके सेवक के साथ ऐसा किया पर यह मुझे आपसे मिलने से रोक रोक रहा था।”

फिर हनुमान ने भगवान कृष्ण से (जो अभी राम के रूप में सिंहासन पर है) एक वाक्य और कहा “प्रभु आप यह किस दासी के समीप बैठे हुए है और माता सीता कहा है।” यह सुन कर सत्यभामा को जो सुन्दरता का अहंकार हुआ था वह नष्ट हो गया।

इस घटना में गरुड़, सुदर्शन तथा सत्यभामा तीनो का अहंकार टूट गया और वह समझ गये कि कभी भी शक्ति तथा रूप का घमंड नही करना चाहिए।

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