मकर संक्रांति धर्मराज की कहानी

मकर संक्रांति पर धर्मराज की यह कहानी जरूर पढियेगा।

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By Pooja Sharma

हमारे हिन्दू धर्म में कोई भी ऐसा त्यौहार या कार्य नहीं किया जाता जिसके पीछे कोई लॉजिक या कहानी न हो। हमारे धर्म में हर एक संस्कार, हर एक पूजा, प्रार्थना या कोई भी चीज़ क्यों न हो उसके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण या कहानी अवश्य होती है। कहा जा सकता है कि हिन्दू धर्म ही एक मात्र ऐसा धर्म है जो वैज्ञानिक तथ्यों से जुड़ा हुआ है और कई सारी कहानियां भी हमें यहां सुनने को मिलती है। आज हम आपको बताएंगे एक ऐसी कहानी जो मकर संक्रांति से जुडी हुई है और आपने शायद ही कभी सुनी होगी। यह है मकर संक्रांति धर्मराज की कहानी। इसमें आपको है धर्मराज के व्रत और उनकी एक कहानी बताने जा रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस कहानी को सुनने और व्रत करने से मोक्ष एवं स्वर्ग प्राप्ति होती है।

शुरू करने से पहले जान लीजिये कि धर्मराज श्री यमराज का ही दूसरा नाम है।

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मकर संक्रांति धर्मराज की कहानी

एक समय की बात है जब पृथ्वीलोक पर बबरुवाहन नामक एक राजा हुआ करता था। उनका राज्य बड़ा ही सुखद था, समृद्ध था एवं राजा भी बड़े दयालु थे। इसी राज्य में एक ब्राह्मण हरिदास भी निवास करता था। हरिदास एक तपस्वी था एवं उसका विवाह गुणवती से हुआ था जो कि बहुत ही सुशिल, धर्मवती एवं पतिव्रता महिला थी।

गुणवती ने जीवनभर में सभी देवी देवताओं की उपासना की और सभी प्रकार के व्रत किये एवं दान धर्म भी किया करती थी। इसके अलावा अतिथि सेवा को भी वह अपना धर्म मानती थी। ऐसे ही हंसी ख़ुशी और ईश्वर की उपासना करते हुए वह वृद्ध हो गयी। जब उसकी मृत्यु हुई तो यम धर्मराज के दूत उसे अपने साथ धर्मराजपुर ले गए।

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मकर संक्रांति धर्मराज की कहानी

यमलोक का दृश्य:

यमलोक में सुन्दर सिंहासन पर धर्मराज विराजमान थे और उनके ही पास में चित्रगुप्त भी बैठे थे। आपको पता ही होगा कि चित्रगुप्त के पास सभी प्राणियों के पाप पुण्य का लेखा होता है। चित्रगुप्त प्रभु को प्राणियों का लेखा जोखा सुना रहे थे तभी वहाँ यमदूत गुणवती को लेकर पहुंचे।

गुणवती उन्हें देखकर थोड़ी भयभीत हुई और मुँह निचे कर कड़ी हो गयी। चित्रगुप्त ने गुणवती का ब्यौरा निकाला और धर्मराज को बताया। धर्मराज ने पूरा ब्यौरा देखा और वे प्रसन्न हुए परन्तु फिर भी उनके मुख मंडल पर थोड़ी उदासी भी छायी हुई थी। यह देखकर गुणवती ने पूछा – हे प्रभु, मैंने तो सारे सत्कर्म ही किये फिर भी आपके मुख पर यह उदासी छायी है इसका कारण क्या है? कृपा करके मुझे बताइये प्रभु मुझसे क्या भूल हुई है?

यम धर्मराज ने उत्तर में कहा – हे देवी, तुमने सभी देवी-देवताओं के व्रत किए हैं, उपासना की है परन्तु कभी तुमने मेरे नाम से कुछ पूजा या पाठ या कोई भी दान धर्म नहीं किया है।

धर्मराज की यह बात सुनते ही गुणवती क्षमा याचना करने लगी और कहने लगी हे प्रभु मुझे आपकी उपासना के बारे में कुछ ज्ञात नहीं मैं नहीं जानती आपकी उपासना कैसे करते हैं। कृपा करके मुझे वह उपाय बताइये प्रभु जिससे कि सभी मनुष्य आपकी कृपा के पात्र बन सकें।

यह सुनकर गुणवती ने धर्मराज जी से क्षमा याचना की और कहा कि मैं आपकी उपासना नहीं जानती थी । कृपा करके वो उपाय बताइए जिससे सभी मनुष्य आपकी कृपा के पात्र बन सकें । मैं आपके मुख से आपकी भक्ति का मार्ग सुनना चाहती हूँ और मेरी यह इच्छा है कि मृत्यु लोक (धरती) पर वापस जाकर आपकी भक्ति करूँ और सभी लोगों को भी इसके बारे में बताऊँ।

धर्मराज जी ने उसकी विनती सुनकर बताया – जिस दिन सूर्य देव उत्तरायण में प्रवेश करते हैं यानि कि मकर संक्रांति के दिन, मेरी पूजा शुरू करना चाहिए और उस दिन से लेकर पुरे एक वर्ष तक मेरी पूजा करते हुए कथा सुनना चाहिए और एक दिन भी पूजा या कथा नहीं छूटनी चाहिए। साथ ही पूजा करने वाले व्यक्ति को धर्म के इन दस नियमों का पालन करना चाहिए।

  1. धीरज रखना एवं संतुष्ट रहना।
  2. अपने मन को वश में रखना और सभी को क्षमा करना।
  3. चोरी या अन्य दुष्कर्म नहीं करना।
  4. मानसिक एवं शारीरिक शुद्धि यानि पर पुरुष एवं पर स्त्री से बचाकर रहना।
  5. अपनी इन्द्रियों को वश में रखना।
  6. बुरे विचारों को अपने मन में न लाना यानि कि बुद्धि को पवित्र रखना।
  7. पूजा, पाठ एवं दान पुण्य इत्यादि करना।
  8. व्रत करना एवं व्रत की कहानी सुनना।
  9. सच बोलना एवं सभी से अच्छा व सच्चा व्यवहार करना।
  10. क्रोध न करना।

धर्म के इन सभी दस लक्षणों का पालन करते हुए पुरे एक वर्ष तक मेरी कथा नियम से सुनें, दान पुण्य व परोपकार करें एवं अगली मकर संक्रांति पर इस व्रत का उद्यापन करें। अपने सामर्थ्य से मेरी एक मूर्ति बनाकर विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा करवाकर हवं पूजन करें एवं साथ ही चित्रगुप्त की भी पूजा करें एवं काले तिल के लड्डू का भोग लगाएं।

ब्राह्मण भोज करवाएं व बांस की टोकरी में 5 (पांच) सेर अनाज का दान करें। इसके अलावा गरीबों या जरूरतमंद को गद्दा, तकिया, कम्बल, छप्पन, लोटा व वस्त्र आदि का दान करें, हो सके तो गौ दान करें।

धर्मराज से व्रत की पूरा कथा सुनकर गुणवती ने पुनः धर्मराज से प्रार्थना की और कहा, हे प्रभु! आप एक बारे फर

धर्मराज जी की बातें सुनकर गुणवती ने विनती की – हे प्रभो ! मुझे फिर से मृत्यु-लोक में जाने दीजिये । जिससे मैं आपके व्रत को करूँ और इस व्रत का प्रचार भी लोगों मे कर सकूँ। इसपर यम राज ने अपनी सहमति दी।

धरती लोक पर गुणवती पुनः जीवित हो उठी और उसके परिजन प्रसन्न हुए।

गुणवती ने धर्मराज से हुए वार्तालाप के बारे में अपने पतिदेव को बताया और कहा कि हम यह व्रत अवश्य करेंगे और धर्म के नियमों का पालन भी करेंगे। मकर संक्रांति आते ही गुणवती और उसके पति ने व्रत शुरू कर दिया और एक वर्ष पश्चात् इसका उद्यापन किया।

इसी व्रत के प्रभाव से उनपर धर्मराज की कृपा हुई और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

कथा का समापन हुआ।

तो बोलो यम धर्मराज की….. जय!!!

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