महर्षि में कौनसी संधि है?

महर्षि में कौनसी संधि है?

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By Mridul Navgotri

इस शब्द की संधि जानने से पूर्व हम जानेंगे कि संधि क्या है? जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाते हैं उसे संधि कहते हैं। अगर इसे दूसरे शब्द में बताया जाए तो जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं तब जो परिवर्तन होता है उसे संधि कहते हैं। आइये जानते हैं कि महर्षि में कौनसी संधि है?

महर्षि में कौनसी संधि है?

महर्षि में गुण संधि है। ‘महर्षि’ का अर्थ ‘महान ऋषि’ होता है। इसका उचित संधि विच्छेद ‘महा + ऋषि = महर्षि’ होता है। गुण संधि की अगर परिभाषा बताई जाये तो जब संधि करते समय अ, आ के बाद इ, ई हो तो “ए” बनता है। जब अ, आ के बाद उ, ऊ आए तो ओ बनता है। जब अ, आ के बाद ऋ आए तो अर बनता है, ऐसे संधि को गुण संधि कहते हैं। इनके उदाहरण निम्नलिखित पंक्तियों में दिए गए हैं :-

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मन + उपदेश = मनोपदेश (अ + उ = ओ)
नर + ईश = नरेश (अ + ई = ए)
मह + इंद्र = महेंद्र (अ + इ = ए)
ऊमा + ईश = ऊमेश (आ + ई = ए)

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