कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का क्या अर्थ होता है?

हिन्दू धर्म के अनुसार कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष क्या है?

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By Nitesh Harode

हिन्दू धर्म काफी पुराना हैं और इससे जुड़े कई प्रश्न लोगों के मन में आते हैं क्योंकि यह एक धर्म नहीं है अपितु जीवन जीने की एक परम्परा है जो कई रीती रिवाजों से बंधी हुई है। आज का प्रश्न है कि कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष का क्या अर्थ होता है? आइये जानते हैं कि कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष क्या है?

कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष

हिन्दू शास्त्र में तिथि का विशेष महत्व है। पंचांग को हिंदू कैलेंडर माना जाता है और दैनिक पंचांग तथा मासिक पंचांग में पूरे महीने का विवरण दिया जाता है। हिन्दू पंचांग में एक माह को 30 दिनों में विभाजित किया गया है। 15 दिन का एक पक्ष शुक्ल पक्ष और शेष 15 दिन का कृष्ण पक्ष माना जाता है। चन्द्रमा के आकार के अनुसार शुक्ल और कृष्ण पक्ष की गणना की गई है।

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पौराणिक ग्रंथों के अनुसार

दक्ष प्रजापति ने अपनी सत्ताईस बेटियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया था। ये सत्ताईस बेटियां सत्ताईस नक्षत्र हैं और दक्ष के एक अभिजीत नामक एक पुत्र भी है। सत्ताईस पत्नियों मेसे चंद्र केवल रोहिणी से प्यार करते थे। ऐसे में बाकी स्त्री नक्षत्रों ने अपने पिता से शिकायत की कि चंद्र उनसे प्यार नहीं करते हैं। दक्ष प्रजापति के कहने के बाद भी चंद्र ने रोहिणी का साथ नहीं छोड़ा और बाकी पत्नियों की अवहेलना करते ही गए। जिस चंद्र पर क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने उन्हें क्षय रोग का श्राप दिया। इस श्राप के कारण चंद्रमा का तेज तथा आकार धीरे-धीरे कम होता जाता है। और इसी प्रकार कृष्ण पक्ष की शुरुआत यहीं से हुई।

यह देख कर चन्द्रमा भयभीत हो गये व सहायता की तलाश में, वे ब्रह्मा के पास पहुंचे और उनसे मदद मांगी। तब ब्रह्मा और इंद्र दोनों ने चंद्र से भगवान शिव की पूजा करने का आग्रह किया। जब चंद्र ने भगवान शिव की पूजा की, तो उन्हें भगवान शिव की जटाओं में स्थान दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप चंद्रमा की चमक फिर से बहाल हो गई इसीलिए 15 दिन उनका आकार बढता है तथा 15 घटता है। फिर भी वह दक्ष के श्राप से पूरी तरह बच नहीं सके। इसलिए चंद्रमा को कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के बीच वैकल्पिक रूप से काम करना पड़ता है। दक्ष ने कृष्ण पक्ष और शिवजी ने शुक्ल की रचना की।

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