Khilafat Andolan Kab Hua Tha

क्या है ख़िलाफ़त आंदोलन? कब और क्यों था यह ख़िलाफ़त आंदोलन

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By Nitesh Harode

भारत देश को आज़ादी एक दिन में नही मिली है ये सेकड़ो आंदोलनों और हजारो क्रान्तिकारियो के बलिदान के कारण हमें मिली है। भारत देश में आज़ादी से पहले बहुत से ऐसे वीर शहीद हुए है जिनका नाम इतिहास के पन्नो में दर्ज नही हो सका । आज़ादी से पहले अंग्रेजो के खिलाफ हुए अनेको आंदोलनों में से एक था ख़िलाफ़त आन्दोलन । यह आन्दोलन भी काफी लम्बा चला था आइये जानते है ख़िलाफ़त आन्दोलन के बारे में ख़िलाफ़त आंदोलन आन्दोलन क्यों हुआ था? ख़िलाफ़त आंदोलन कब हुआ था ( Khilafat Andolan Kab Hua Tha ) आदि इस आन्दोलन से जुडी हुई जानकारिया ।

ख़िलाफ़त आंदोलन कब हुआ था

ख़िलाफ़त आन्दोलन के लिए जिस समिति का गठन किया गया था उसमे मोहम्मद अली और शौकत अली बन्धुओ के साथ-साथ अनेक मुस्लिम नेता सामिल थे । इस आन्दोलन का मुख्य कारण 1922 में तुर्की-इतालवी के युद्ध के समय ब्रिटेन का तुर्की का साथ ना देना भारतीय मुसलमानों को बिलकुल ना पसंद आया क्योकि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन एवं तुर्की के बीच होने वाली ‘सीवर्स की संधि’ से तुर्की के सुल्तान के समस्त अधिकार छिन लिए गये थे और पूरी दुनिया के मुस्लिम तुर्की सुल्तान को अपना ‘खलीफ़ा’ यानिकी धर्म गुरु मानते थे।

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अखिल भारतीय ख़िलाफ़त कमेटी ने जमियतउल्-उलेमा की मदद ली और ख़िलाफ़त आन्दोलन का संगठन किया फिर 1920 में मोहम्मद अली ने में ख़िलाफ़त घोषणापत्र प्रसारित कर दिया और फिर इस राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व गांधी जी ने किया गांधीजी के ऐसा करने से ख़िलाफ़त आन्दोलन तथा असहयोग आंदोलन एक साथ हो गये । खलीफा का समर्थन करने के लिए  मुहम्मद अली को चार साल तकजेल में रहना पड़ा । मुसलमानों की मांग थी की मुसलमानों के जो पवित्र स्थान है वहां खलीफा का नियन्त्रण रहे ।

खिलाफत आंदोलन कब हुआ था?

ख़िलाफ़त आंदोलन सन् 1919 में लखनऊ से शुरू हुआ था। ख़िलाफ़त आंदोलन मार्च 1919 से जनवरी 1921 तक चला था । खिलाफत आँदोलन और असहयोग आँदोलन देश में तेजी से फेलने लगे जिससे की अंग्रेजो को यह चिंता होने लगी की कही उनके लोगो की मांग तो पूरी नही करनी पड़ेगी ।

ख़िलाफ़त आन्दोलन जिस उद्देश्य से किया जा रहा था उसी उद्देश्य से दुसरे देश के मुस्लिम में कही न कही खड़े परन्तु भारत में मुसलमानों का उस समय ज्यादा प्रभाव था । राजनेतिक दलों द्वारा इस आन्दोलन को लेकर हर किसी की अलग अलग धारणा थी ।

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