गणेश जी की कहानी खीर वाली

गणेश जी की कहानी खीर वाली

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By Nitesh Harode

गणेश जी सुख समृद्धि और बुद्धि के देवता माना गया है, वह अपने भक्तो की सारी मनोकामानें पूर्ण करते हैं और उनके सारे दुखो को भी हर लेते हैं, आज हम आपको गणेश जी की कहानी खीर वाली बताने वाले हैं यह कहानी काफी प्रचलित हैं तथा इस कहानी से यह सिद्ध होता है कि गणेश जी कभी अपने भक्ति को अकेला नहीं छोड़ते हैं। आइये गणेश जी की यह खीर वाली कहानी क्या है यह जानते हैं वह भी इस लेख के माध्यम से।

गणेश जी की कहानी खीर वाली

गणेश जी की खीर वाली कहानी ; एक बार गणेश जी पृथ्वी पर लोग की परीक्षा लेने और उनका व्यवहार जानने के लिए बाल रूप में आते हैं और अपने नन्हे नन्हे हाथों में कुछ चावल और एक चम्मच दूध ले कर हर किसी से खीर बनाने का आग्रह करते हैं परन्तु हर कोई उन्हें मना कर देता है और उन पर हँसने लगता हैं, काफी समय बीत जाने के बाद जब गणेश जी एक झोपड़ी के पास पहुचाते हैं तो वहां उन्हें एक बूढी महिला दिखती है तो वह उससे जा कर कहते हैं कि मेरे लिए खीर बना दो। यह सुन महिला उस बालक के लिए खीर बनाने के लिए मान जाती हैं और उस बालक को कहती है कि आ जाओ बेटा अंदर, वह महिला खीर तैयार करने के लिए एक छोटी सी कटोरी निकालती है तभी गणेश जी कहते हैं कि माता इसमें नहीं बड़े बर्तन में खीर बनाओं, तो वह बूढी महिला बच्चे के इस आग्रह को बालहट समझ कर हाँ कर देती हैं और एक बड़ा सा बर्तन लेकर आती है और उसमे खीर बनाने की तैयारी करती है।

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फिर उस बच्चे से वह थोड़े से चावल और दूध मांगती है तथा उन्हें उस बड़े से बर्तन में डाल देती हैं तथा जैसे ही वह उन्हें उस बर्तन में डालती हैं वह बर्तन पूरा भर जाता है, यह देख महिला चोक जाती हैं, इसके बाद गणेश जी उनसे कहते हैं कि आप खीर तैयार करो में स्नान कर कर आता हूँ क्योकि में काफी थक गया हूँ।

खीर तैयार हो जाती हैं परन्तु वह बालक नहीं आता है घर के सदस्य उसका इंतज़ार करते रहते हैं पर काफी देर हो जाती है, तथा घर के बच्चो को भूख लगने लगती हैं और वह खान मांगने लगते हैं तभी महिला उन्हें वह खीर दें देती हैं जो उसके तैयार की थी और बच्चो से कहती हैं कि तुम छिप कर इस खीर को खालो वरना वह बालक कहेगा की आपने मुझसे पूछे बिना ही बच्चो को खीर क्यों देदी। बच्चे खीर खाने से पहले भगवान को भोग लगाते हैं और खीर खा लेते हैं, काफी समय बीत जाता है पर वह बालक नहीं आता है तो बूढ़ी महिला स्वयं भी खीर खाने विचार कर लेती हैं।

जैसे ही महिला खीर खाने लगती हैं गणेश जी आ जाते हैं तभी महिला उन्हें देख कर कहती हैं कि कहा रह गये थे बेटा इनता समय लगा दिया आ जाओ खीर खालो। गणेश जी उत्तर देते है कि उन्होंने खीर खाली है तब महिला पूछती है कैसे तुम तो अभी आये हो? फिर गणेश जी उत्तर देते हैं इनके बच्चो ने जब खाई थी तभी उन्होंने खीर खाली थी।

महिला कुछ समझ नहीं पाती हैं और कहती हैं कि ठीक हैं पर हम इतनी ज्यादा रखी हुई खीर का क्या करेंगे ? तब गणेश जी कहते हैं कि इसे गाँव में बाट देते हैं। बूढी महिला सोचती है कि एक तपेला खेर पुरे गाँव में कसी बात सकती हैं पर वह बच्चे का मन रखने के लिए गाँव में खीर का वितरण प्रारम्भ कर देती हैं, और फिर वह क्या देखती हैं की पात्र में खीर खत्म ही नहीं हो रही हैं।

इसकी जानकरी उस राज्य के राजा को पडती हैं और वह उस पात्र को अपने कब्जे में ले लेता है परन्तु जैसे ही वह उस पात्र को खोलता है उसमे कीड़े मकोड़े होते हैं तो वह अचम्भित हो जाता है और इस पात्र को पुनः उस बूढी महिला को लौटा देता है।

महिला उस पात्र को पाने के बाद उस बालक से कहती हैं कि अब वह इस पात्र का क्या करें? तो बालक उसे कहता है कि इसे किसी कौने में गाड़ दें और सुबह निकाल लें। और जाते जाते उस महिला की झोपड़ी को एक हल्की से लात मारते हैं जिससे वह झोपड़ी महल में परिवर्तित हो जाती हैं और उस महिला को उस बालक में गणेश के दर्शन हो जाते हैं तथा अपनी लीला समाप्त कर गणेश जी अंतर्ध्यान हो जाते हैं।

गणेश जी के कहे अनुसार वह महिला उस खीर के पात्र को गाड़ देती हैं और सुबह का इंतजार करती है, जैसे ही सुबह होती है वह उस पात्र को पुनः निकल लेती हैं और उसे खोल कर देखती हैं तो उसमे उसे कई कीमती आभूषण होते हैं, फिर वह महिला गणेश जी का धन्यवाद करती हैं।

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