दुर्गा चालीसा कितनी बार पढ़ना चाहिए

दुर्गा चालीसा कितनी बार पढ़ना चाहिए?

No Comments

Photo of author

By Pooja Sharma

हिन्दू सनातन धर्म में प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान भक्त नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद पाने के लिए अनुष्ठान, व्रत आदिकरते हैं। इस त्योहार के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करना भक्त को कई तरह के लाभ पहुचा सकता है ऐसा करने से माता प्रसन्न होती है और अपने भक्तो की हर विपत्ति से रक्षा केर करती है। मां दुर्गा के उत्सव के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है। आगे आप जानेंगे कि दुर्गा चालीसा कितनी बार पढ़ना चाहिए?

दुर्गा चालीसा कितनी बार पढ़ना चाहिए?

यदि कोई व्यक्ति दुर्गा चालीसा का पाठ करता है तो उसे इसे नवरात्रि के नौ दिनों तक प्रतिदिन इसका पाठ करना चाहिए। यदि आप चाहें, तो आपके पास प्रतिदिन दुर्गा चालीसा का पाठ करने का विकल्प है, जी हाँ आप हर दिन दुर्गा चालीसा का पथ कर सकते हैं तथा दिन में एक बार ही दुर्गा चालीसा पाठ करना चाहिए। यह माना जाता है कि दुर्गा चालीसा का पाठ करने से माँ का आशीर्वाद मिलता है, और व्यक्ति की सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं।

ज्ञानग्रंथ का WhatsApp Channel ज्वाइन करिये!

व्यक्ति इसे ईमानदारी और भक्ति के साथ पढ़ते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें वांछित लाभ प्राप्त नहीं होता है। अगर आप दुर्गा चालीसा का पाठ नियम और सही तरीके से नहीं करेंगे तो इसका शुभ फल नहीं मिलेगा।

दुर्गा चालीसा पढ़ने के नियम

हमने नीचे दुर्गा चालीसा पढ़ने के नियमों और उचित तरीके के बारे में जानकारी शामिल की है। दुर्गा चालीसा का पाठ करनेके लिए सूर्योदय से पहले उठना जरूरी है।

स्नान करके साफ कपड़े पहनने चाहिए। इसके बाद एक लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर देवी दुर्गा की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। इसके बाद धूप, दीप और पुष्प अर्पित कर पूजा करनी चाहिए। यदि आप चाहें तो अतिरिक्त लाभ के लिए मूर्ति के पास एक दुर्गा यंत्र भी रखा जा सकता है। एक बार जब ये चरण पूरे हो जाते हैं, तो पूजा समाप्त हो जाती है और दुर्गा चालीसा का पाठ करने का समय आ जाता है। दुर्गा चालीसा का पाठ करने से भक्त को कई तरह के लाभ प्राप्त होते हैं आइये जानते हैं करगा चालीसा के लाभों के बारें में।

दुर्गा चालीसा के लाभ

अगर आप नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ करते हैं तो इससे आपको मानसिक शांति और शारीरिक शक्ति मिलती है। इसके अतिरिक्त, यह आपको अपने दुश्मनों पर काबू पाने और उनकी संख्या कम करने में मदद करता है। बुरी शक्तियों से परेशान व्यक्तियों को नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ करना चाहिए। जो लोग नियमित रूप से दुर्गा चालीसा का पाठ करते हैं उन्हें समाज में सम्मान मिलता है और उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती है। दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आत्मविश्वास बढ़ता है और सफलता मिलती है। इससे जीवन में उन्नति और सफलता का मार्ग भी प्रशस्त होता है।

दुर्गा चालीसा

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥

तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥

अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥

शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा संंपूर्ण ॥

कुछ और महत्वपूर्ण लेख –

0Shares

Leave a Comment