एट्रोसिटी एक्ट क्या है

एट्रोसिटी एक्ट क्या है?

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By Sachin Dangi

हमारे देश संविधान बहुत ही विस्तृत है जिसमे लोगों को कई तरह के अधिकार, कानूनों और कर्तव्यो का वर्णन है। इसमें कई ऐसे एक्ट है जो देश के कल्याण के लिए बनाए गये हैं और यह देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ऐसा ही एक एक्ट है एट्रोसिटी एक्ट, यदि आप नहीं जानते हैं कि एट्रोसिटी एक्ट क्या है? तो आगे आपको इस बारे में पढ़ने के लिए मिल जाएगा।

एट्रोसिटी एक्ट क्या है?

हमारे देश में कई वर्षो से जातिवाद फैला हुआ है जिस कारण कारण कई जातियों को पीड़ा सहनी पडती है इसीलिए एट्रोसिटी एक्ट बनांया गया है ताकि उनके खिलाफ हो रहे अपराध को कम किया जा सकता हैं। एट्रोसिटी एक्ट अधिनियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए बनाया गया है और इसमें ऐसे अपराधों पर मुकदमा चलाने और पीड़ितों को राहत प्रदान करने के प्रावधान भी शामिल हैं। रोजमर्रा की भाषा में इसे आमतौर पर अत्याचार निवारण या अनुसूचित जाति/जनजाति अधिनियम कहा जाता है। यह कानून अनुसूचित जाति और जनजाति से संबंधित व्यक्तियों के खिलाफ किए गए अपराधों को दंडित करता है। यह पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार प्रदान करता है और मुकदमे की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए अदालतें स्थापित करता है। भारतीय दंड संहिता पहले से ही कुछ अपराधों को कवर करती है, यह कानून कठोर दंड लगाता है। ऐसे कार्य जो क्रूर और अपमानजनक माने जाते हैं, जैसे उन्हें जबरदस्ती अखाद्य पदार्थ खिलाना या उन्हें सामाजिक रूप से अलग-थलग करना, जाति के नाम पर अपमानित करना, अभद्र भाषा का प्रयोग करना, नीचा दिखने की कोशिश करना आदि।

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भारतीय संविधान में कुछ जातियों के सम्मान, आत्मसम्मान, प्रगति और कल्याण की रक्षा के लिए विभिन्न प्रावधान हैं। इन जातियों से संबंधित व्यक्तियों के प्रति किसी भी प्रकार के दुर्व्यवहार को रोकने के लिए 16 अगस्त 1989 को स्थापित किए गए थे। दलित समुदाय को हमेशा से कई प्रकार की समस्याओ का सामना करना पड़ता है जिसमे उन्हें अछूत मानना शामिल है। दलितों के खिलाफ विभिन्न प्रकार के अत्याचारों को रोकने के लिए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसार भारत सरकार द्वारा कानून पारित किया गया था। इस अधिनियम में अपराधों के लिए कठोर दंड और दलितों के खिलाफ हिंसा के कृत्यों के लिए कठोर दंड के प्रावधान शामिल हैं। इस अधिनियम में शामिल अपराध गंभीर, गैर-जमानती माने जाते हैं और इन्हें समझौते के माध्यम से हल नहीं किया जा सकता है। कई ऐसे अपराध है जो इसी श्रेणी में आते हैं जिनकी सूचि नीचे दी गयी है –

  • अपमानजनक जातिवादी टिप्पणियाँ करने पर भी सजा का प्रावधान है।
  • सिंचाई सुविधाओं तक जाने से रोकना या वन अधिकारों से वंचित रखना।
  • चुनाव लड़ने में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से रोकना।
  • किसी लोकसेवक के हाथों उत्पीड़न करने पर उन्हें भी सजा का प्रावधान है।
  • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को वस्त्रहरण कर आहत करना।
  • यौन दुर्व्यवहार भाव से उन्हें छूना या अभद्र भाषा का उपयोग करना।
  • अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकान या अन्य निवास स्थान छोड़ने के लिए मजबूर करने पर छह मास से पाँच वर्ष तक की सजा हो सकती है।
  • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की महिलाओं को देवदासी के रूप में समर्पित करना।
  • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्य के विरुद्ध यौन सम्बन्धी दुर्व्यवहार करना।
  • जातिसूचक शब्द कहना।
  • जाति के नाम पर अपमानित करना, अभद्र भाषा का प्रयोग करना।
  • सिर और मूँछ के बालों का मुंडन कराना।
  • सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार करना।
  • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की पूजनीय वस्तुओं को विरूपित करना।
  • समुदाय के लोगों को जूते की माला पहनाना, या किसी भी अन्य तरीके से अपमान करना।
  • मानव और पशु नरकंकाल को निपटाने और लाने-ले जाने के लिये बाध्य करना।
  • अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य की किसी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर सात वर्ष तक की सजा हो सकती है।

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