सात फेरे ही क्यों होते हैं

हिन्दू धर्म में शादी के दौरान सात फेरे ही क्यों लिए जाते हैं? जानिए इसका मुख्य कारण

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By Pooja Sharma

शादी हर किसी के जीवन में काफी महत्व रखती है और इसके बाद जिम्मेदारियां बड़ जाती है। हिन्दू धर्म में कुल 16 संस्कारों का वर्णन मिलता हैं उन्ही मेसे एक संस्कार है विवाह का संस्कार, जिसे पाणिग्रहण संस्कार कहा जाता है, और बहुत सी रस्मों के बाद यह विवाह सम्पन्न होता है। पति -पत्नी को कई रस्मों से गुजरना होता है और साथ ही बहुत सी नियमों को मानना होता है। दुसरे धर्मो की तुलना में हिन्दू धर्म में विवाह की प्रक्रिया काफी अगल और जटिल है क्योंकि विवाह को साथ जन्मो का बंधन माना गया है।

विवाह के समय कई रस्मे होती है जिनमे हल्दी, मेहँदी, मंडप फेरे और भी बहुत कुछ शामिल है। इसके बाद ही शादी सम्पन्न होती है और इन रस्मो को पंडित जी के द्वारा पूर्ण करवाया जाता है। वर वधु सात फेरों के साथ सात वचन भी लेते हैं और जीवन भर साथ निभाने की कसम खाते हैं। पर क्या आप जानते हैं कि शादी में सात फेरे ही क्यों लिए जाते हैं? क्या कारण हे कि इन फेरो की संख्या सात ही रखी गयी है इससे अधिक या कम क्यों नहीं?

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शादी में सात फेरे ही क्यों लिए जाते हैं?

शादी के बाद जीवनभर पति पत्नी को साथ रहना होता है और एक दुसरे का हर सुख दुःख में साथ देना होता है और इसके लिए ही वह शादी के समय सात वचन लेते हैं। हिन्दू धर्म में सात अंक का काफी महत्व है और बहुत सी महत्वपूर्ण चीजों में भी यह संख्या देखी जा सकती है जिसमे सात रंग, सप्ततऋषि, सात दिन, सात चक्र, सात समुद्र, मनुष्य की सात क्रियाएं, सात तारे, आदि शामिल है। यदि सात संख्या शादी में भी अपना महत्व बनें हुए है और शादी के समय वर वधु अग्नि को साक्षी मान कर सात वचन लेते हैं और अग्नि के सात फेरे लेते हैं।

हिन्दू धर्म में मान्यता है कि मनुष्य सात जन्म लेता है और विवाह का बाद यह रिश्ता सात जन्मो तक बना रहे इसके लिए भी सात फेरो को महत्वपूर्ण माना जाता है। शादी में जब जोड़े फेरे लेते हैं उन्हें ‘सप्तपदी’ भी कहा जाता है। हर एके फेरे के सात हेक वचन लिया जाता है और इसके बाद वर वधु बंधन में बंध जाते हैं।

क्या सात फेरो और वचन का महत्व

साथ फेरे में हर एक फेरे के साथ वचन लिया जाता है जिसमे पहला भोजन व्यवस्था के लिए, दूसरा शक्ति संचय, तीसरा धन की व्यवस्था, चौथा आत्मिक सुख के लिए, पांचवां पशुधन संपदा हेतु, छठा सभी ऋतुओं में उचित रहन-सहन के लिए व 7वें पग में कन्या अपने पति का अनुगमन करते हुए सदैव साथ चलने का वचन लेती है और विवाह सम्पन्न होता है। इन वचनों में बंधने के बाद दोनों एक आपस में एक पवित्र रिश्ते में बंध जाते हैं और यह रिश्ता अब सात जन्मों के लिए बंध जाता है।

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