भृगुकुलकेतु शब्द में कौनसा अलंकार मुख्यतः प्रयुक्त है?

भृगुकुलकेतु शब्द में कौनसा अलंकार मुख्यतः प्रयुक्त है?

No Comments

Photo of author

By Nitesh Harode

आज आपको भृगुकुलकेतु शब्द में कौनसा अलंकार मुख्यतः प्रयुक्त है इस प्रश्न का उत्तर जानने को मिलेगा। यह सवाल परीक्षा में भी पूछा जाता है इसीलिए विद्यार्थियों को इसका उत्तर याद होना चाहिए।

भृगुकुलकेतु शब्द में कौनसा अलंकार मुख्यतः प्रयुक्त है?

भृगुकुलकेतु शब्द में कौनसा अलंकार है यह जानने से पहले यह जान लेते हैं कि अलंकार किसे कहते हैं। अलंकार काव्य की शोभा बढाते हैं, इनका काम वस्तु को अलंकृत करना होता है। अलंकार का शाब्दिक अर्थ है आभूषण या सजावट है।

ज्ञानग्रंथ का WhatsApp Channel ज्वाइन करिये!

भृगुकुलकेतु शब्द में रूपक अलंकार है। रूपक अलंकार में अधिक साम्य के आधार पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत का आरोप करके उपस्थित दोंनों भेदों का अभाव दिखाते हुए उपमेय और उपमान के रूप में वर्णन किया जाता है।

रूपक अलंकार के अन्य उदाहरण

  • पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।
  • वन शारदी चन्द्रिका-चादर ओढ़े।
  • बीती विभावरी जागरी ! अम्बर पनघट में डुबो रही तारा घाट उषा नगरी।
  • गोपी पद-पंकज पावन कि रज जामे सिर भीजे।
  • उदित उदयगिरी-मंच पर, रघुवर बाल-पतंग। विकसे संत सरोज सब हर्षे लोचन भंग।।
  • विषय-वारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।
  • सिर झुका तूने नीयति की मान ली यह बात। स्वयं ही मुरझा गया तेरा हृदय-जलजात।

कुछ और महत्वपूर्ण लेख –

0Shares

Leave a Comment