Dwitiya Shreni Ke Rangon Ki Sankhya Kitni Hoti Hai ?

Dwitiya Shreni Ke Rangon Ki Sankhya Kitni Hoti Hai ? – द्वितीय श्रेणी के रंगों की संख्या कितनी होती है ?

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By Nitesh Harode

रंग हमारे जीवन में महत्त्व पूर्ण भूमिका रखते है। हम चारो तरफ से रंगो से घिरे हुए है साथ ही रंगो से ही हमे विभिन्न प्रकार की परिस्तिथियों के बारे में पता चलता है। कुछ मुख्य रंग होते है और कुछ मिश्रित जो २ या २ से अधिक रंगो से मिल कर बने होते है । रंगो की विभिन्न श्रेणियाँ होती है जिस मेसे एक होती है द्वितीय श्रेणी जिसमे भी कुछ प्रमुख रंग होते है। जैसा की आप खोज रहे हे की ( Dwitiya Shreni Ke Rangon Ki Sankhya Kitni Hoti Hai ) द्वितीय श्रेणी के रंगों की संख्या कितनी होती है ? तो इसका जवाब आप को निचे इसी पोस्ट में मिल जाएगा।

रंगो की उत्पत्ति का मुख्य स्त्रोत

रंगो की उत्पत्ति सूर्य से हुई है, सूर्य के प्रकाश में सात रंग होते है जिन्हे आप प्रिज़्म की सहायता से देख सकते है। सूर्य में सात रंग होते है जो पानी या प्रिज़्म जैसी चीजों के बिच में आकर बिखर जाते है और हमे अलग अलग देखने लगते है। साथ में ये रंगहीन होते है जैसा की सूर्य के प्रकाश को देख कर हम समझ ही सकते है। सूर्य में पाए जाने वाले रंग क्रमशः बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, और लाल है जिन्हे हम शार्ट में “बैं जा नी ह पी ना ला” कहते है।

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रंगों को तीन भागों में बाटा गया है।

प्राथमिक रंग , द्वितीयक रंग और विरोधी रंग।

प्राथमिक रंग

यह मूल रंग होते है जो किसी रंग के मिश्रण से नहीं बने होते है। जैसे की लाल , हरा और नीला। प्राथमिक रंग दो प्रकार के होते है एडीटिव यानी योगात्मक रंग और पिगमेंट्स के रंग सब्सट्रैक्टिव यानी व्यकलात्मक रंग। पिगमेंट्स के रंग वास्तु केरंग होते है ये रंग व्यकलात्मक रंग इसलिए कहलाते है क्युकी ये जिस रंग के होते है उसे छोड़ कर सारे रंगो को अपने पास रख लेते है। जैसे की आसमान नीले रंग को अपने पास नहीं रखता इसलिए वह नीले रंग का दिखता है। योगात्मक एक से अधिक रंगो से मिल कर बनते है यानी इनमे मिलने की प्रवत्ति होती है, जैसे लाल और हरा रंग एक साथ मिल जाए तो दिखेगा पीला. यानी प्रकाश के रंगों में जुड़ने का गुण होता है।

द्वितीयक रंग

द्वितीयक रंग वे रंग होते है जो दो प्राथमिक रंगो के मिश्रण से प्राप्त किये जाते हैं। द्वितीयक रंग रानी, पीकॉक नीला व पीला है।

जैसे- लाल + नीला → रानी
हरा + नीला → पीकॉक
नीला लाल + हरा → पीला

द्वितीयक रंग प्राथमिक रंगो के माइन से बनते है। इन्हे दो रंगो में बात गया है गर्म रंग और ठन्डे रंग। गर्म रंग के अंतर्गत बैंगनी पीला लाल नारंगी आते इन पर लाल रंग का प्रभाव होता है इसलिए इन्हे गर्म रंग कहा जाता है
ठंडे रंग पर नीले रंग का प्रभाव होता है। नीलमणी या आसमानी समुद्री हरा धानी या पत्ती हरा ठंडे रंग के अंतर्गत आते है।

विरोधी रंग

विरोधी रंग प्राथमिक व द्वितीयक रंगों के मिश्रण से बनते है। और जैसे की नीले का विरोधी रंग पीला, नारंगी का आसमानी व बैंगनी का विरोधी रंग धानी है। यह रंग प्राथमिक व द्वितीयक रंगो से मिल कर बनता है। रंग चक्र में दिखाए गए आमने सामने के रंग को विरोधी रंग कहते हैं। जैसे की हरे रंग का विरोधी लाल रंग होता है अर्थात लाल रंग का विरोधी हरा रंग होता है। नीले रंग का विरोधी नारंगी रंग होता है अर्थात नारंगी रंग का विरोधी नीला रंग होता है।

द्वितीय श्रेणी के रंगों की संख्या कितनी होती है ? Dwitiya Shreni Ke Rangon Ki Sankhya Kitni Hoti Hai ?

द्वितीय श्रेणी के रंगों की संख्या 3 ( तीन ) होती है।लाल, पीला, और नीला द्वितीय श्रेणी के रंग है। इंद्रधनुष में जो 7 रंग होते है, वह सूर्य के प्रकाश में ही रंग होते है जो पानी के बिच आ कर बिखर जाते है और हमे अलग अलग हो कर दिखते है।

रंगों की विशेषताएं


हर रंग किसी न चीज का प्रतीक होता है जैसे लाल रंग खतरे का प्रतीक होता है। इसे दूर से ही देखजा सकता है और ये भड़काऊ रंग की तरह प्रतीत होता है। नीला कलर शान्ति का प्रतीक माना जाता आ रहा है, अधिकांश लोग अपने घर की दीवारों को इस रंग में करवाते है ताकि उनका मन शांत रहे । पीला रंग शुभ कार्यो का प्रतीक माना जाता है। यह मन को शांत करने वाला कलर भी होता है। वैसे ही हरा रंग प्रकृति को दर्शाता है और मन के अंदर आनंद की अनुभूति करवाता है। नारंगी रंग धार्मिक कार्यो में ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला रंग होता है। यह एक आध्यात्मिक रंग है। सफेद रंग को देखते ही मन में कोमल अनुभव होने लगता है। यह भी शांति का प्रतीक माना जाता है । वैसे ही काला रंग रंगों की विशेषताएं है की ये शोक, अवसाद, विश्‍वासघात को दर्शाता है।

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