अतिथि देवो भव कहाँ से लिया गया है?

अतिथि देवो भव कहाँ से लिया गया है?

No Comments

Photo of author

By Nitesh Harode

आप ने कभी न कभी यह तो जरुर सुना होगा कि अतिथि देवो भव। पर क्या आप जानते हैं कि अतिथि देवो भव कहाँ से लिया गया है और क्या है इसका मतलब? अगर नही जानते हैं तो इस लेख में आपको इस प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।

अतिथि देवो भव कहाँ से लिया गया है?

यह वाक्य ‘तैत्तिरीयोपनिषद’ से लिया गया है। यह वाक्यांश तैत्तिरीय उपनिषद के शिक्षावली के 11वें अनुवाद की दूसरे स्रोत में लिखा हुआ है,जो इस तरह है -देवपितृकार्याभ्यां न प्रमादितव्यं। मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भाव। अतिथिदेवो भव।

ज्ञानग्रंथ का WhatsApp Channel ज्वाइन करिये!

अतिथि देवो भव का अर्थ होता है कि मेहमान भगवान की तरह होते हैं उनका सम्मान करना चाहिए। मेहमान कभी भी आ सकते हैं उनका कोई निश्चिय समय नही होता है।

केवल भारत ही ऐसा देश है जिसकी संस्कृति बहुत कुछ सिखाती है यह देश विश्व गुरु बनने की क्षमता रखता है इस देश की पारम्परिक सभ्यताऐ बहुत ही आकर्षक और सम्मान से भरी हुई है। भारत केवल एक मात्र ऐसा देश है जो मेहमानों को भगवान का दर्जा देता है। वसुधैव कुटुम्बकम का नारा भी भारत देश में ही उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है सम्पूर्ण संसार एक परिवार है। एक जुट रहने, मिल कर काम करने और मानवता को बढ़ावा देने में भारत प्राचीन काल से ही आगे रहा है।

कुछ और महत्वपूर्ण लेख –

0Shares

Leave a Comment